जिंदगी एक पहेली है
दुःख मेरी सहेली है
रह -रह के होता विच्लांत है
न जाने मन क्यों अशांत है
तन्हाईओ के तारो मे झनझनाहट है
मन के कोने मे एक आहट है
इस मोड पर नही किसी का सहारा
मझधार तो है पर नही किनारा
रह-रह के होता आक्रांत है
न जाने मन क्यों अशांत है
हर वक़्त नए मोड कि तलाश है
दूर धरती मुझसे दूर आकाश है
चारो तरफ फैला दुःख और नाश है
दिल मे जल रही फिर भी एक आस है
परेशानियो से मन विच्लांत है
न जाने मन क्यों अशांत है।
निवेदिता शुक्ला
Tuesday, September 25, 2007
ज़िन्दगी
तुम कितने अजनबी थे
जब आए थे हमारे ज़िन्दगी मे
विश्वास नही होता
आज ज़िन्दगी बन गये हो तुम
हमारे जीवन मे रौशनी फैलाये हो
हमे खुशियों के सागर मे डुबोया है
दिल का कोना-कोना झिलमिलाया है
मेरे तन-मन को मह्काया है
हर ख्वाब दिखाया
दिल चौक उठता है जब
अहसास होता है
तुम हमारे नही हो
सारा विश्वास चकनाचूर हो जता है
आस्था चरमरा जाती है
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी
kaap जाती हूँ
प्रशन करती हूँ ?
क्या बिच मझधार मे छोड जाओगे
क्या अंत तक साथ न दे पाओगे
या कश्ती को भवर मे डाल जाओगे
अब देखती हूँ तुम्हे, तो लगता है
तुम थे ही नही हमारे
बस कुछ समय के लिए
ख्वाब बन, आ गाए थे हमारे पास
वो पल ही अब हमारी धरोहर है
उन्ही को संजोए
चलती रहेगी जिन्दगी हमारी।
निवेदिता शुक्ला
जब आए थे हमारे ज़िन्दगी मे
विश्वास नही होता
आज ज़िन्दगी बन गये हो तुम
हमारे जीवन मे रौशनी फैलाये हो
हमे खुशियों के सागर मे डुबोया है
दिल का कोना-कोना झिलमिलाया है
मेरे तन-मन को मह्काया है
हर ख्वाब दिखाया
दिल चौक उठता है जब
अहसास होता है
तुम हमारे नही हो
सारा विश्वास चकनाचूर हो जता है
आस्था चरमरा जाती है
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी
kaap जाती हूँ
प्रशन करती हूँ ?
क्या बिच मझधार मे छोड जाओगे
क्या अंत तक साथ न दे पाओगे
या कश्ती को भवर मे डाल जाओगे
अब देखती हूँ तुम्हे, तो लगता है
तुम थे ही नही हमारे
बस कुछ समय के लिए
ख्वाब बन, आ गाए थे हमारे पास
वो पल ही अब हमारी धरोहर है
उन्ही को संजोए
चलती रहेगी जिन्दगी हमारी।
निवेदिता शुक्ला
दल-dal
ऐसे दलदल मे मे फसती जा रही हूँ
जिसमे ना डूब रही हूँ
और ना ही निकल पा रही हूँ।
असहज सी होती जा रही है ज़िन्दगी
देखती हूँ आकाश कि ओर
शायद कोई आशा कि किरण दिख जाए
पकड़ ले कोई हाथ मेरा
जीवन को आधार मिल जाए।
कही भी जाऊ ,कुछ भी करूं
तुम सामने से ओझल होते नही
कैसे अपने आप को समझाऊ
वो मेरा है ही नही
शायद मैं ही नही
तुम्हारे लायक
और क्या कहूँ
भूल नही पाती हूँ तुम्हे
एक छड के लिए भी
वो पल जो हमने साथ बिताये
वो खट्टी मीठी यादें
क्या इसी कशमकश मे जीते रहेंगे हम
जीवन यूं ही दल- दल मे फंसी रह जाएगी।
जिसमे ना डूब रही हूँ
और ना ही निकल पा रही हूँ।
असहज सी होती जा रही है ज़िन्दगी
देखती हूँ आकाश कि ओर
शायद कोई आशा कि किरण दिख जाए
पकड़ ले कोई हाथ मेरा
जीवन को आधार मिल जाए।
कही भी जाऊ ,कुछ भी करूं
तुम सामने से ओझल होते नही
कैसे अपने आप को समझाऊ
वो मेरा है ही नही
शायद मैं ही नही
तुम्हारे लायक
और क्या कहूँ
भूल नही पाती हूँ तुम्हे
एक छड के लिए भी
वो पल जो हमने साथ बिताये
वो खट्टी मीठी यादें
क्या इसी कशमकश मे जीते रहेंगे हम
जीवन यूं ही दल- दल मे फंसी रह जाएगी।
निवेदिता shuklaa
आप के साथ
मैं आप के साथ रहना चाहती हूँ
मैं आप के साथ जीना चाहती हूँ
हाथों मे हाथ डाल खिलखिलाना चाहती हूँ
कंधे पर सिर रख रोना चाहती हूँ
मैं आपको पाना चाहती हूँ
मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ
बिन आपके नही जी पाऊँगी
निर्जीव हो जाउंगी मैं
कैसे रह पाऊँगी मैं
भला प्राण के भी कोई साँस ले पता है
बिना आत्मा के शारीर रह पाता है
तो फिर कैसे सोच लिया तुमने
रह लुंगी मैं तुम बिन
मेरा प्यार हो तुम
रक्त संचार हो तुम
मेरी हिम्मत हो तुम
मेरा हाथ पकड़ आगे बढ़ने कि सीख देते हो तुम
मेरा दामन थाम चलते रहना तुम
जब तक साँस रहेगी मैं आप के साथ रहूंगी ।
मैं आप के साथ जीना चाहती हूँ
हाथों मे हाथ डाल खिलखिलाना चाहती हूँ
कंधे पर सिर रख रोना चाहती हूँ
मैं आपको पाना चाहती हूँ
मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ
बिन आपके नही जी पाऊँगी
निर्जीव हो जाउंगी मैं
कैसे रह पाऊँगी मैं
भला प्राण के भी कोई साँस ले पता है
बिना आत्मा के शारीर रह पाता है
तो फिर कैसे सोच लिया तुमने
रह लुंगी मैं तुम बिन
मेरा प्यार हो तुम
रक्त संचार हो तुम
मेरी हिम्मत हो तुम
मेरा हाथ पकड़ आगे बढ़ने कि सीख देते हो तुम
मेरा दामन थाम चलते रहना तुम
जब तक साँस रहेगी मैं आप के साथ रहूंगी ।
निवेदिता शुक्ला
Saturday, September 15, 2007
अशांत मन
हेल्लो दोस्तो,
इतनी मशक्कत के बाद आखिरकार मैंने भी ब्लोग बाना ही लिया और आप लोगो के साथ जुड़ गयी। अपनी बाते कहने के लिए और आपकी बाते सुनने के लिए। कभी कभी हम बहुत कुछ कहना चाहते है पर समय कि कमी के कारन और कोई सुनने वाला नही होने के कारन हमारी बातें दिल मे ही रह जाती है। ऐसे मे ब्लोग के ज़रिये हम सब अपनी बातें कह और सुन सकते है। मेरे कुछ खास दोस्तो ने ब्लोग बनाया था और मैं भी बेचैन थी ब्लोग बनाने के,आप लोगो के आशीर्वाद से मेरा ब्लोग बन गया है। आज के लिए इतना ही काफी है.बाक़ी डी कि बातें फिर समय निकाल के करेंगे। आप लोगो ने मेरा ब्लोग पढ हो तो पढने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और नही पढे तो भी धन्यवाद।
निवेदित शुक्ला
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